होमोफोबिया boxing जगत का एक अहम भाग है, जिसे ज्यादा boxers बोलने मे बहुत ज्यादा कतराते है। बाहर से आप भले कितने ही बलवान और शक्तिशाली लगे पर अपने मं के अंदर आप कितने निराश और टूटे हुए लगते है ये कोई नही जानता है। ऐसे ही एक प्रसिद्ध boxer ऑरलैंडो क्रूज़ ने एक वर्ल्ड टाइटल के लिए चुनौती दी, जो खेल के लिए एक ऐतिहासिक क्षण होना चाहिए था, लेकिन पुरुषों की मुक्केबाजी में प्रगति पर 10 साल सीमित हैं और होमोफोबिया के मुद्दे अभी भी खेल को परेशान करते हैं।
Boxing का खेल सभी वर्गो के लिए है
Boxing सभी के लिए एक समान है इसमे पुरुष, महिला दोनो के लिए समान नियम है,कोई भी, कभी भी, इस खेल को खेल सकता है। इसके लिए कोई उमर सीमा निर्धारित नही है आप कभी भी बॉक्सिंग सीख सकते है, पर जैसे हर किस्से के दो पेहलु होते है वैसे ही boxing के साथ भी है, एक तरफ आपको पैसा नाम मिलता है। उसके विपरीत आपको थोड़े हेल्थ रेलैटेड रोग का भी सामना करना पड़ता है।
लेकिन जब होमोफोबिया की बात आती है तो क्या खेल में कोई खाली स्थान है? पिछले 12 महीनों में दो बड़े फाइट से पहले, अंतिम प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोक्सरस् की बेकार की बातों को अस्वीकार्य होमोफोबिक ताने में देखा गया है।पिछले महीने क्रिस यूबैंक जूनियर के साथ मुकाबले से पहले लियाम स्मिथ ने इस तरह की टिप्पणी की थी।
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पिछले साल केल ब्रुक के साथ अपनी लड़ाई से पहले, आमिर खान भी होमोफोबिक भाषा का इस्तेमाल करते दिखाई दिए, जिसे उन्होंने बाद में नकार दिया।ऐसा बोलने वाले वे अकेले हाई-प्रोफाइल बॉक्सर नहीं हैं। उदाहरण के लिए, हाल ही के वर्षों में फ़्लॉइड मेवेदर ने कोनोर मैकग्रेगर पर निर्देशित एक होमोफोबिक गाली के लिए माफ़ी मांगी।एक और बॉक्सिंग सुपरस्टार मैनी पैकियाओ ने भी भद्दी टिप्पणियां कीं, जिसके लिए उन्होंने भी बाद में माफी मांगी।
ऐसे उदाहरण देखने के बाद सवाल उठने लाजमी है कि क्या boxing मे होमोफोबिया कि समस्या है। और इसके उत्तर मे स्पोर्ट्स लेखक डॉन मैकरे कहते है कि boxing मे होमोफोबिया है। डॉन मैकरे 30 सालों से boxing लेखक है और इतने साल के अनुभव से उन्होंने इस बात को प्रमाणित किया है।स्मिथ-यूबैंक जूनियर प्रेस कॉन्फ्रेंस की कथित रूप से निंदा की गई, कम से कम एक संकेत कि अधिकांश लोगो, इस तरह के व्यवहार को देखने में तेज थे और आक्रामक और पूरी तरह से अनुचित थे।
हालांकि स्मिथ ने बाद में माफी मांगी, यह स्पष्ट नहीं था कि उन्होंने किस हद तक स्वीकार किया कि उनकी टिप्पणियां कितनी बुरी थीं। ये सायद एक इतिहास के समान चल रहा है जिसका अंत कही दिखाई नही दे रहा है।